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नई दिल्ली, मेडिकल कॉलेज प्रवेश घोटाले में जांच के घेरे में आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस नारायण शुक्ला से न्यायिक कामकाज वापस ले लिया गया है। तीन जजों की इन हाउस जांच कमेटी की रिपोर्ट में जस्टिस शुक्ला पर लगे आरोपों में दम पाए जाने के बाद उनके खिलाफ यह कार्रवाई हुई है। इससे उनके खिलाफ आगे की कार्रवाई का रास्ता भी साफ माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस नारायण शुक्ला पर महाभियोग चलेगा।

मालूम हो कि लखनऊ के एक मेडिकल कॉलेज को सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017-18 के सत्र में प्रवेश (एडमिशन) लेने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मना करने के बावजूद हाई कोर्ट में जस्टिस शुक्ला की पीठ ने मेडिकल कॉलेज को इस वर्ष छात्रों को प्रवेश देने की अनुमति दे दी थी। इस मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने जस्टिस शुक्ला पर लगे आरोपों की इन हाउस जांच प्रक्रिया अपनाते हुए तीन न्यायाधीशों की जांच समिति बनाई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा को सौंप दी है। इस रिपोर्ट में जस्टिस शुक्ला पर लगे आरोपों को सही बताया गया है। सूत्र बताते हैं कि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने जांच समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद जस्टिस शुक्ला को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने या पद से इस्तीफा देने का सुझाव दिया था लेकिन जस्टिस शुक्ला ने सुझाव नहीं माना।

जज के पद से हटाए जाने की सिफारिश

इसके बाद प्रधान न्यायाधीश ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दिलीप भोसले से कहा कि वे जस्टिस शुक्ला का न्यायिक कामकाज वापस ले लें। तत्पश्चात जस्टिस शुक्ला से न्यायिक कामकाज वापस ले लिया गया है। उनका न्यायिक कामकाज वापस लिये हुए एक सप्ताह से ज्यादा का समय हो गया है। सूत्र बताते हैं कि समिति ने रिपोर्ट में जस्टिस शुक्ला को पद से हटाए जाने की भी सिफारिश की है। लेकिन संविधान के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज को सिर्फ महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता है। ऐसे में जस्टिस शुक्ला को पद से हटाने के लिए भी वही प्रक्रिया अपनानी होगी। समिति की रिपोर्ट भी केंद्र सरकार को भेजी जाएगी।

लखनऊ से इलाहाबाद लाए गए थे
कामकाज वापस लिए जाने से पहले जस्टिस शुक्ला की पीठ जेल की क्रिमिनल अपीलों की सुनवाई करती थी। मेडिकल कॉलेज मामले में फैसले पर विवाद उठने के बाद उन्हें लखनऊ से इलाहाबाद की प्रधान पीठ में बुला लिया गया था।

जज को पद से हटाने की प्रक्रिया

महाभियोग की प्रक्रिया में जज को पद से हटाने का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। लोकसभा में प्रस्ताव लाने के लिए प्रस्ताव पर 100 सांसदों के हस्ताक्षर होना चाहिए जबकि राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षरित प्रस्ताव की जरूरत होती है। प्रस्ताव के बाद आरोपों की जांच के लिए सदन के अध्यक्ष भारत के प्रधान न्यायाधीश से मशविरा करके तीन सदस्यीय जांच समिति गठित करते हैं जो कि आरोपी जज पर लगे आरोपों की जांच करती है। जांच में जज को कदाचार का दोषी पाए जाने पर सदन में महाभियोग पर बहस होती है। कुछ वर्ष पहले कलकत्ता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ महाभियोग चला था लेकिन प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही जस्टिस सेन ने पद से इस्तीफा दे दिया था।

सौमित्र सेन ने भी नहीं मानी थी इस्तीफे की सलाह

कदाचार के आरोपी जस्टिस सौमित्र सेन ने भी पद से इस्तीफा देने की सलाह नही मानी थी। इसके बाद उनका न्यायिक कामकाज वापस ले लिया गया था और प्रधान न्यायाधीश ने उन्हें पद से हटाने के लिए सरकार को लिखा था। कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनकरन पर भी कदाचार के आरोप लगे थे। वे मुख्य न्यायाधीश थे इसलिए उनका न्यायिक या प्रशासनिक कामकाज वापस नहीं लिया जा सकता था क्योंकि कार्य का बंटवारा और प्रशानिक कामकाज मुख्य न्यायाधीश ही देखते हैं। इसलिए उनका स्थानांतरण सिक्किम हाई कोर्ट कर दिया गया। जब जस्टिस दिनकरन के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई तभी उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था। सौमित्र सेन ने भी महाभियोग के दौरान इस्तीफा दे दिया था।