नई दिल्ली, मंगलवार को बाबरी मस्जिद विध्वंस की 25वीं वर्षगांठ से ठीक एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट में अब अगली सुनवाई 8 फरवरी 2018 को होगी। सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने मामले की सुनवाई 2019 तक टालने को कहा है। वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सभी दस्तावेज पूरे करने की मांग की है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने मांग की है कि मामले की सुनवाई 5 या 7 जजों की बेंच को 2019 के आम चुनाव के बाद करनी चाहिए,क्योंकि मामला राजनीतिक हो चुका है,सिब्बल ने कहा कि रिकॉर्ड में दस्तावेज अधूरे हैं, कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने इसको लेकर आपत्ति जताते हुए सुनवाई का बहिष्कार करने की बात कही है। कपिल सिब्बल ने कहा कि राम मंदिर एनडीए के एजेंडे में है,उनके घोषणा पत्र का हिस्सा है इसलिए 2019 के बाद ही इसको लेकर सुनवाई होनी चाहिए,उन्होंने कहा कि 2019 जुलाई तक सुनवाई को टाला जाना चाहिए।
इसके जवाब में यूपी सरकार की ओर से पेश हो रहे तुषार मेहता ने कहा कि जब दस्तावेज सुन्नी वक्फ बोर्ड के ही हैं तो ट्रांसलेटेड कॉपी देने की जरूरत क्यों हैं? शीर्ष अदालत इस मामले में निर्णायक सुनवाई कर रही है। मामले की रोजाना सुनवाई पर भी फैसला होना है। मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन ने कहा कि अगर सोमवार से शुक्रवार भी मामले की सुनवाई होती है, तो भी मामले में एक साल लगेगा। रामलला का पक्ष रख रहे हरीश साल्वे ने कोर्ट में बड़ी बेंच बनाने का विरोध किया और कहा कि बेंच को कोर्ट के बाहर चल रही राजनीति पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस.अब्दुल नजीर भी होंगे, इस मुकदमे की सुनवाई के लिए सभी पक्षकार पूरी तैयारी से अदालत में सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं। रामलला विराजमान की ओर से पक्षकार महंत धर्मदास ने दावा किया कि सभी सबूत,रिपोर्ट और भावनाएं मंदिर के पक्ष में हैं,हाईकोर्ट के फैसले में जमीन का बंटवारा किया गया है जो हमारे साथ उचित न्याय नहीं है।
उन्होंने कहा कि हमारी कोर्ट में दलील होगी कि यहां ढांचे से पहले भी मंदिर था और जबरन यहां मस्जिद बनाई गई,लेकिन बाद में फिर मंदिर की तरह वहां राम लला की सेवा पूजा होती रही अब वहीं रामजन्मभूमि मंदिर है।लिहाजा हमारा दावा ही बनता है कि कोर्ट सबूत और कानून से न्याय करता है और सबूत और कानून हमारे साथ है,यानी रामलला के जन्मस्थान पर सुप्रीम कोर्ट भी सबूतों और कानूनी प्रावधान पर ही न्याय करेगा।
बाद बदली भी जा सकती है।