नई दिल्ली : भगवान शिव के अनेक रूप हैं। कोई उन्हें भोले भंडारी के नाम से जानता है तो कोई महाकाल के नाम से उनकी उपासना करता है। मगर ये बहुत कम लोगों को पता होगा कि शिव जी के जितने रूप हैं, उन रूपों की उपासना करने वालों के वरदान भी भिन्न-भिन्न हैं। इसकी मुख्य वजह ये है कि शिव के हर एक रूप हर एक अवतार से जुड़ी एक विचित्र कहानी भी है जिसका अपना अलग महत्व है।
आज हम आपको शिव के 6 ऐसे रूपों के बारे में अवगत कराने जा रहे हैं जिनकी उपासना करने के बाद आपको खुद भोले भंडारी मनवांछित वरदान प्रदान करेंगे।
पहला रूप – ‘महादेव’
इस रूप की कहानी काफी रोचक और सृष्टि के निर्माण से जुड़ी है। बताया जाता है कि सर्वप्रथम शिव ने ही सभी देवी-देवताओं को जन्म दिया। इसके बाद उन्होंने अपने ही अंश से शक्ति को भी जन्म दिया। इसके बाद सभी देवी-देवताओं ने सृष्टि का निर्माण किया। इस तरह से सभी देवी-देवताओं का सृजन करने की वजह से भगवान शिव को महादेव कहा जाता है। कहा जाता है जो महादेव का उपासना करता है वो एक साथ सभी देवी-देवताओं की भी पूजा करता है। जिसका फल भी भक्त को अवश्य मिलता है।खासकर सोमवार के दिन महादेव की उपासना करने से हर ग्रह काबू में रहता है।
दूसरा रूप – ‘आशुतोष’
भगवान शिव अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। उनके इसी गुण की वजह से उन्हें आशुतोष कहा जाता है। शिव के आशुतोष रूप की उपासना करने से मानसिक तनाव और तकलीफें खत्म हो जाती हैं। आशुतोष रूप की उपासना करने का मन्त्र है -“ॐ आशुतोषाय नमः”
तीसरा रूप – ‘रूद्र’
शिव के अतिक्रोध और संहाराक प्रवत्ति के चलते ही इनका एक रूप ‘रूद्र’ के नाम से भी जाना जाता है। उग्र अवतार में भक्त शिव के ‘रूद्र’ रूप की ही उपासना करते हैं। इस रूप की ये खासियत है कि संहार के बाद रोने पर मजबूर कर देता है। विनाश के बाद ही नवनिर्माण का विचार पनप पाता है। शिव का रूद्र रूप जीवन-दर्शन और मन में वैराग्य उत्पन्न कर देता है। रूद्र अवतार की उपासना करते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय “ॐ नमो भगवते रुद्राय” मंत्र का जाप करना फलदायक सिद्ध होगा।
चौथा रूप – ‘नीलकंठ’
समुद्र-मंथन के दौरान निकले विष को अपने कंठ में स्थापित करने की वजह से ही भगवान शिव का एक रूप ‘नीलकंठ’ माना गया है। नीलकंठ रूप की उपासना करने से शत्रु हमेशा दूर रहते हैं और बुरी शक्तियों का प्रभाव भी आप पर बिलकुल नहीं पड़ता है। सोमवार के दिन शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाकर नीलकंठ की पूजा की जाती है। नीलकंठ रुप की उपासना का मंत्र है – “ॐ नमो नीलकंठाय”
पांचवा रूप – ‘मृत्युंजय’
शिव जी का ये रूप सबसे अधिक महत्वपूर्ण और फलदायी साबित होता है। इस रूप की उपासना करने से व्यक्ति मृत्यु को भी परास्त कर सकता है। इस रूप की पूजा से अकाल मृत्य से बचा जा सकता है। कहते हैं कि इस रूप ने भगवान शिव खुद कलश लेकर अपने भक्तों के प्राणों की रक्षा करते हैं। इस रूप की उपासना करने से व्यक्ति रोगों-कष्टों से बचा रहता है। इस रूप की उपासना करने का मंत्र “ॐ हौं जूं सः” है। इसके अलावा आप महामृत्युंजय मंत्र का जाप करके भी इस रूप की उपासना कर सकते हैं।
छटा रूप – ‘गौरीशंकर’
इस रूप का आधार माता गौरी और शंकर का आपसी सुखद रिश्ता है। कहते हैं कि इस रूप की उपासना करने से व्यक्ति का विवाह बहुत जल्द संपन्न हो जाता है और जिसका विवाह हो चुका है उनका वैवाहिक जीवन हमेशा सुखद रहता है। इस रूप की पूजा करने का मन्त्र है “ॐ गौरीशंकराय नमः”