नई दिल्ली : दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पॉपुलर सर्च इंजन ”गूगल” आज डूडल के ज़रिये इतिहास की एक ऐसी महान शख्सियत को सलामी दे रहा है जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में सेवाभाव और संवेदना की मिसाल कायम कर रख दी थी।
गूगल डूडल के ज़रिये दे रहा है रुख्माबाई को सलामी
आज गूगल के डूडल में एक महिला गले में स्टेथस्कोप डाले हुए नज़र आ रही है जिसके आस-पास कुछ बेड हैं जिन पर मरीज लेते हैं और नर्सेज उनकी सेवा कर रही हैं। शायद आपमें से बहुत कम लोग इस महिला से परिचित होंगे। इसलिए आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डॉक्टरी पोशाक में नज़र आ रही ये महिला कोई और नहीं बल्कि भारत की सबसे पहली महिला डॉक्टर ”रुख्माबाई राउत ‘ हैं। जिन्होंने अपना पूरा जीवन मरीजों और पीड़ितों की सेवा और उनके दर्द दूर करने में ही बिता दिया था। आज उनकी 153 वीं जन्मतिथि पर गूगल भी डूडल के ज़रिये उन्हें सलामी दे रहा है।
आखिर कौन थीं रुख्माबाई राउत
22 नवंबर 1864 को एक बढ़ई जाति के परिवार में जन्मी रुख्माबाई राउत के पिता जनार्धन पांडूरंग और माँ जयंतीबाई ने उनकी परवरिश में कभी कोई कमी नहीं आने दी। ब्रिटिश काल के अधीन भी उनके माता-पिता ने अपनी बेटी की उच्च शिक्षा और सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा।इसी वजह से रुख्माबाई में भी बचपन से ही अपनेपन और सेवाभाव का बीज अंकुरित हो गया था। जो आगे चलकर एक ऐसा विशालकाय पेड़ बना जिसने आजीवन लोगों को खुशियों की छाँव और निष्काम भावना से मदद रूपी फल दिए।
महज 11 साल की उम्र में जबरन हुआ था विवाह
ब्रिटिश काल में जन्मी रुख्माबाई ने बचपन से ही अंग्रेजों के अत्याचार और समाज में फैली रूढ़िवादी परम्पराओं के खिलाफ जंग लड़ी थी। जिसकी वजह से उन्होंने काफी लम्बी लड़ाई के बाद साल 1955 में हिन्दू मैरिज की व्यवस्था को दोबारा स्थापित किया। मगर समाज में फैली बाल-विवाह के आगे उन्हे भी हार झेलनी पड़ी और ना चाहते हुए भी महज 11 साल की उम्र में ही उनका विवाह दादाजी भिकाजी के साथ करा दिया था। विवाह के बाद उनके पति दादाजी भिकाजी ने रुख्माबाई की पढ़ाई पर रोक लगाते हुए उन्हें चूल्हा-चौका की जिम्मेदारी सौंप दी। इस बात से नाखुश रुख्माबाई के पिता ने उनको भिकाजी के घर से वापस बुला लिया।
चाहे जेल भेज दो मगर पति के साथ रहना मंजूर नहीं
इसके बाद दादाजी का पारा सातवे आसमान पर पहुँच गया और उसने रुख्मबाई के खिलाफ वापस आने के लिए कोर्ट में याचिका दायर कर दी। साल 1884 में कोर्ट ने रुख्माबाई के खिलाफ फैसला सुनाते हुए उन्हें ये आदेश दिया कि ”या तो उन्हें अपने पति के घर रहना पड़ेगा या फिर जेल में ” स्वाभिमानी रुख्माबाई ने जवाब दिया कि ”चाहे मुझे जेल भेज दो मगर इस इंसान के साथ मैं मरते दम तक नहीं रहूंगी।”
68 सालों बाद मिली जीत
इसके बाद रुख्माबाई की ये व्यक्तिगत लड़ाई पूरे समाज की लड़ाई बन कर उभर कर सामने आयी। रुख्माबाई ने महिलाओं के समर्थन में ये जंग लड़ी कि विवाह के पवित्र बंधन में पति और पत्नी दोनों को समान अधिकार और सम्मान प्राप्त होना चाहिए। लगभग 68 सालों तक चली इस जंग में रुख्माबाई को जीत मिली साल 1955 में जब सरकार ने ”हिन्दू मैरिज एक्ट” को पास किया।
लंदन में की डॉक्टरी की पढाई , भारत में आजीवन की सेवा
इसके बाद रुख्माबाई ने डॉक्टर बनने की इच्छा ज़ाहिर की। तब लोगों ने स्वेच्छा से उन्हें चंदा इकट्ठा करके इंग्लैंड भेजा ताकि वो डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर सकें। लंदन से डॉक्टरी की शिक्षा हासिल करने के बाद रुख्माबाई ने राजकोट में आकर मरीजों का इलाज करना शुरू कर दिया और आजीवन इसी काम में तत्पर रहीं।
एक बेहतरीन लेखिका भी थीं रुख्माबाई
रुख्माबाई एक पेशे से डॉक्टर होने के साथ-साथ एक अच्छी लेखिका भी थीं। उन्होंने अपने पेन नेम ‘ए हिंदू लेडी’ के अंतर्गत उन्होनें कई अखबारों के लिए लेख लिखे थे। इसके साथ ही उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ भी कई लेख लिखें जिनका प्रभाव भी समाज में देखने को मिला। 25 सितम्बर 1991 को 91 साल की उम्र में रुख्माबाई राउत ने अपनी हर सेवा से मुक्त होकर इस दुनिया से हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।