पहले डोकलाम फिर उसके बाद लद्दाख में भारत-चीन की सेनाएं आमने-सामने आ गई हैंं। 15 अगस्त को लद्दाख में स्थित पेंगोंग झील के करीब दोनों देशों की सेनाओं में टकराव हुआ। चीन के साथ लगातार बढ़ते इन टकरावों के बीच अब भारत के सामने सीमाओं की सुरक्षा को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं। सवाल ये है कि क्या अब चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) भी पाकिस्तान के साथ पश्चिमी सीमा (LoC) की तरह हो जाएगी? क्या वहां निरंतर निगरानी और सतर्क चेतावनी की आवश्यकता होगी?
लद्दाख में एलएसी पर सर्दियों में तापमान -30 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। हालांकि कोई पोस्ट कभी भी रिक्त नहीं हुई है। कुछ जगहों पर सर्दी की वजह से जवानों की संख्या में कमी हो जाती है। मगर अब इसमें बदलाव हो सकता है। अब तैनाती का स्तर गर्मियों के महीनों के तरह ही ज्यादा हो जाएगा।
सूत्रों की मानें तो LAC गश्ती की फ्रीक्वेंसी भी बढ़ सकती है। सीमा के साथ लगभग 60 गश्त पॉइंट हैं। साल भर में ऐसे गश्त पॉइंट की संख्या और बढ़ सकती है। पिछले डेढ़ दशक में सीमाओं पर सैनिकों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है। मगर यह देखते हुए कि कुछ कमजोर क्षेत्रों तक पहुंचना मुश्किल है, भारत के पास तैनाती को मजबूत करने के साथ ही और कोई विकल्प नहीं बचा है। हालांकि, तवांग के पूर्वी क्षेत्र चिंता का विषय बने हुए हैं। सूत्रों ने बताया है कि नई दिल्ली सिनाग, देबंग घाटी और सुबनसारी जैसे क्षेत्रों में भी नजर बनाए हुए हैं।
भारतीय सेना के अनुमानित 50,000-75000 सैनिक, भारत-तिब्बती सीमा पुलिस के गार्ड चीन के साथ सीमा की रक्षा करते हैं। दोनों सेनाओं के आमने-सामने आने की संख्या में पिछले साल जो गिरावट आई थी, उसमें अब बढ़ोतरी हो गई है। इस जुलाई तक लगभग 300 बार घुसपैठ की कोशिशें हुई हैं। जबकि पिछले साल ये संख्या केवल 200 ही थी। साल के अंत तक इसके 500 पार होने की संभावना है।