चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को कहा कि भारत ने 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध से काफी सबक लिया है, इसके साथ ही उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय सेनाएं अब किसी भी चुनौती का सामना कर सकती है। राज्यसभा में भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ पर आयोजित विशेष सत्र की शुरुआत करते हुए जेटली ने कहा, ‘1962 में चीन के साथ हुए युद्ध से हमने सबक लिया है कि हमारे सुरक्षा बलों को पूरी तरह तैयार रहना होगा। तैयारियों का परिणाम हमें 1965 और 1971 में देखने को मिला है। हमारी सेनाएं मजबूत होती गई है।’
जेटली ने कहा, ‘कुछ लोग हमारे देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ मंसूबा रखते हैं, मगर मुझे पूरा भरोसा है कि हमारे बहादूर सैनिक हमारे देश को सुरक्षित रखने में सक्षम हैं, चाहे पूर्वी या पश्चिमी सीमा पर जो भी चुनौती क्यों न हो।’
उल्लेखनीय है कि 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में भारत को शर्मनाक हार झेलनी पड़ी थी, जबकि 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत ने जीत हासिल की थी, वहीं 1971 में भारत के खिलाफ पाकिस्तान को बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी थी और पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर स्वतंत्र देश बांग्लादेश बना था।
भारत और चीन के मध्य जून से सिक्किम सेक्टर में स्थित डोकलाम को लेकर तनाव की स्थिति चल रही है और चीन लगातार भारत को 1962 जैसी हालत करने की धमकी दे रहा है। जेटली ने अपने संबोधन में देश के सामने दो तरह की चुनौतियों का जिक्र किया है। इनमें वामपंथी चरमपंथ और सीमा सुरक्षा शामिल थी।
रक्षा मंत्री जेटली ने कहा, ‘इन परिस्थितियों में पूरे देश को एकसुर में बोलना चाहिए कि हम कैसे देश के संस्थानों को और मजबूत कर सकते हैं और आतंकवाद के खिलाफ कैसे लड़ सकते हैं।’ जेटली ने कहा कि आतंकवाद देश की अखंडता के लिए बहुत बड़ी चुनौती है क्योंकि इसने एक प्रधानमंत्री (1984 में इंदिरा गांधी) और एक पूर्व प्रधानमंत्री (1991 में राजीव गांधी) की जिंदगियां छीन लीं है।
1942 में स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने व उनकी विश्वसनीयता के चलते पूरे देश के आंदोलन में शामिल होने का उल्लेख करते हुए जेटली ने कहा कि लोकसेवकों और संस्थानों की वह विश्वसनीयता अब देखने को नहीं मिलती है, जिसे फिर से बहाल करने की जरूरत है।