मंदिर

आज हम आपको राजस्‍थान के एक ऐसे अजूबे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां रात होते ही इंसान पत्थर के बन जाते हैं। वैसे तो राजस्थान इतिहास और धरोहरें अपने आप में किसी अजूबे से कम न‍हीं है। लेकिन आपको यकीन नहीं होगा लेकिन इस गांव के श्रापित होने की काहानी इस गांव के आसपास रहने वाले खुद बताते हैं।

राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित किराडू के मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रृद्धालुओं को बाड़मेर से करीब 39 किलोमीटर की दूरी तय करके जाना पड़ता है। इसके पीछे की मान्यता है कि इस शहर पर एक साधु का श्राप लगा हुआ है। यह लगभग 900 साल पहले की बात है, जबकि यहां परमारों का शासन था। तब इस शहर में एक सिद्ध संत ने डेरा डाला।

कुछ दिन रहने के बाद जब वे संत तीर्थ भ्रमण संत तीर्थ भ्रमण पर निकले तो उन्होंने अपने साथियों को स्थानीय लोगों के सहारे छोड़ दिया कि आप इनको भोजन-पानी देना और इनकी सुरक्षा करना। जब साधु लौटा संत के जाने के बाद उनके सारे शिष्य बीमार पड़ गए और बस एक कुम्हारिन को छोड़कर अन्य किसी भी व्यक्ति ने उनकी सहायता नहीं की। बहुत दिनों के बाद जब संत पुन: उस शहर में लौटे तो उन्होंने देखा कि मेरे सभी शिष्य मेरे सभी शिष्य भूख से तड़प रहे हैं और वे बहुत ही बीमार अवस्था में हैं। यह सब देखकर संत को बहुत क्रोध आया।

फिर उन्होंने जिस कुम्हारिन ने उनके शिष्यों की सेवा की थी, उसे बुलाया और कहा कि तू शाम होने से पहले इस शहर को छोड़ देना और जाते वक्त पीछे मुड़कर मत देखना। कुम्हारिन शाम होते ही वह शहर छोड़कर चलने लगी लेकिन जिज्ञासावश उसने पीछे मुड़कर देख लिया तो कुछ दूर चलकर वह भी पत्थर बन गई। इस शाप के चलते पूरा गांव आज पत्थर का बना हुआ है। जो जैसा काम कर रहा था, वह तुरंत ही पत्थर का बन गया।

लोगों में है डर इस श्राप के कारण ही आस-पास के गांव के लोगों में दहशत फैल गई जिसके चलते आज भी लोगों में यह मान्यता है कि जो भी इस शहर में शाम को कदम रखेगा या रुकेगा, वह भी पत्थर का बन जाएगा। इसलिए सूरज डूबते ही इस गांव के कौसो दूर तक कोई नहीं भटकता हैं।

किसने करवाया निर्माण
किराडु के मंदिरों का निर्माण किसने कराया इस बारे में कोई तथ्य मौजूद नहीं है। यहां पर पर विक्रम शताब्दी 12 के तीन शिलालेख उपलब्ध हैं। पहला शिलालेख विक्रम संवत 1209 माघ वदी 14 तदनुसार 24 जनवरी 1153 का का है जो कि गुजरात के चालुक्य कुमार पाल के समय का है। दूसरा विक्रम संवत 1218, ईस्वी 1161 का है जिसमें परमार सिंधुराज से लेकर सोमेश्वर तक की वंशावली दी गई है और तीसरा यह विक्रम संवत 1235 का है जो का है जो गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव द्वितीय के सामन्त चौहान मदन ब्रह्मदेव का है।

इतिहासकारों का मत है कि किराडु के मंदिरों का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था तथा इनका निर्माण परमार वंश के राजा दुलशालराज और उनके वंशजों ने किया था। कहते है राजस्‍थान का खुजराहों यहां मुख्यत: पांच मंदिर है जिसमें से केवल विष्णु मंदिर और सोमेश्वर मंदिर ही ठीक हालत में है। बाकी तीन मंदिर खंडहरों में बदल चुके हैं। खजुराहो के मंदिरों की शैली में बने इन मंदिरों की भव्यता देखते ही ही बनती है। हालांकि आज यह पूरा क्षेत्र विराने में बदल गया है लेकिन यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।