सोमवार को एक अख़बार से बातचीत के दौरान बीसीसीआइ लेवल बी कोच व वरिष्ठ क्रिकेटर मनोज रावत ने भारतीय क्रिकेट में चल रहे विवाद पर अपने विचार रखे।
मनोज रावत ने कहा कि, ‘क्रिकेट में कोच व कप्तान के बीच इस तरह के मतभेद होने नई बात नहीं है। ग्रेग चैपल-सौरभ गांगुली, कपिल देव-सचिन तेंदुलकर के बीच भी इस तरह के मतभेद सामने आए थे। क्योंकि इनमें भी दोनों का कद लगभग समान रहा। दरअसल भारतीय क्रिकेट में कप्तान को कोच से ज्यादा अहमियत दी गई है। फिर चाहे कोच के चयन की बात हो या फिर टीम के संयोजन की। बीसीसीआइ ने कोच के चयन में कप्तान को विशेष अधिकार दे रखा है। ऐसे मतभेद तब सामने आते हैं जब कप्तान का पसंदीदा कोच उनसे इतर कुछ अलग करने की सोचे। ऐसे में अहम का टकराव होना लाजिमी है। चैंपियंस ट्राफी के दौरान नए कोच के लिए आवेदन मांगना, विवाद उठने पर अनिल कुंबले को एक माह का एक्सटेंशन देना और फिर कुंबले का इस्तीफा देना भारतीय क्रिकेट की अस्थिरता को दर्शाता है।’
कोच के चयन में कप्तान को न मिले वीटो पावर
खिलाड़ियों को अनुशासित बनाने में कोच अहम जिम्मेदारी निभाता है, लेकिन जब कोच का ही चयन खिलाड़ियों की पसंद से हो तो उसपर दबाव रहेगा। भारतीय क्रिकेट में कुछ ऐसा ही होता आ रहा है। चयन समिति के साथ ही कप्तान को कोच के चयन में शामिल करना ऐसे विवादों को जन्म देता रहेगा। बोर्ड को चाहिए कि वह कोच के चयन में कप्तान के वीटो पावर को खत्म करे और समिति पर ही इसका जिम्मा सौंप दे।
मनोज रावत ने आगे कहा कि, ‘गैरी कस्र्टन, डंकन फ्लेचर, जॉन राइट जैसे कोच भी रहे जिन्होंने टीम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इनसे किसी भी कप्तान के मतभेद उभरकर सामने नहीं आए। ऐसा नहीं है कि इनका कद ऊंचा नहीं था, लेकिन इन्होंने मैदान के बाहर तो रणनीति बनाई ही बल्कि मैन मैनेजमेंट पर भी फोकस किया। अनिल कुंबले भले ही सरल नजर आते हैं, लेकिन एक खिलाड़ी के रूप में वह भी काफी आक्रामक रहे। भारतीय कप्तान विराट कोहली में भी आक्रामकता कम नहीं। खिलाड़ी का चयन हो या फिर टीम का संयोजन दोनों ही अपनी पसंद ऊपर रखना चाहते हैं। ऐसे में मतभेद तो होंगे ही। भारतीय टीम को ऐसा कोच मिलना चाहिए, जो केवल टीम की रणनीति बनाने के साथ ही मैन मैनेजमेंट पर ध्यान दे।’
उन्होंने कहा कि, ‘वर्तमान में जितनी क्रिकेट खेली जा रही है उससे खिलाडिय़ों में टीम में बने रहने पर ज्यादा दबाव है। कोच को चाहिए कि वे खिलाड़ियों की मानसिक स्थिति को समझे और टीम से बाहर होने के डर को खत्म करे। जब कोच खिलाड़ियों पर दबाव बनाएगा तो विद्रोह जन्म लेगा। ऐसा ही कप्तान को भी देखना होगा कि वह रणनीति बनाने न सिर्फ कोच का साथ दे बल्कि टीम के चयन में पसंद-नापसंद पर भी विचार करें।’