सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक को लेकर आज दूसरे दिन भी सुनवाई जारी है। सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में 19 मई तक रोज सुनवाई करेगी।
सुनवाई के दौरान वकील राम जेठमलानी भी तीन तलाक की एक पीड़िता की ओर से पेश हुए। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 सभी नागरिकों को बराबरी का हक देते हैं और इनकी रोशनी में तीन तलाक असंवैधानिक है। जेठमलानी की राय में महिलाओं से सिर्फ उनके लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं हो सकता और सुप्रीम कोर्ट में तय होने वाला कोई भी कानून भेदभाव को बढ़ावा देने वाला नहीं होना चाहिए।
जेठमलानी ने कहा, ‘कुरान कहती है कि आप अगर ज्ञान की तलाश में हैं तो अल्लाह की राह पर हैं। एक ज्ञान के साधक की स्याही शहीद के खून से ज्यादा महान है।’
सुनवाई के दूसरे दिन चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने पूछा कि क्या ट्रिपल तलाक परंपराओं का एक हिस्सा है या फिर इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है?
कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि देश से बाहर दूसरे देशों में ट्रिपल तलाक को लेकर क्या स्थिति है?
सलमान खुर्शीद का जवाब
मामले का जवाब देते हुए सलमान खुर्शीद ने कहा कि दूसरे देशों में ट्रिपल तलाक नहीं है बल्कि केवल भारतीय मुस्लिमो में इसका प्रचलन हैं।
सुनवाई के दौरान सलमान खुर्शीद ने इस मसले को लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के मत पर सवाल उठाते हुए कहा की बोर्ड के अनुसार ट्रिपल तलाक गलत है, पाप है लेकिन इसके बावजूद कानूनन वैध है।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा अगर 3 महीने के भीतर पुरुष केवल दो बार तलाक कहता है और तीसरी बार नहीं कहता तो क्या तब भी वो अपनी पत्नी से निकाह कर सकता है या महिला को हलाला से गुजरना होगा।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से पहले ही कह दिया था कि हम ये तय करेंगे कि तीन तलाक और निकाह हलाला धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन तो नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए ये भी कहा कि हम ये तय करेंगे कि क्या पर्सनल लॉ को संविधान के अनुछेद 13 के तहत कानून माना जाएगा या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 6 दिन की सुनवाई में 3 दिन वो लोग दलील देंगे, जो कि तीन तलाक और निकाह हलाला के खिलाफ हैं, बाकी तीन दिन बचाव पक्ष को सुना जाएगा।
जेएस खेहर करेंगे बेंच की अध्यक्षता में हर धर्म के जज
इसकी अध्यक्षता खुद चीफ जस्टिस जे एस खेहर करेंगे। बेंच गर्मी की छुट्टी में विशेष रूप से इस सुनवाई के लिए बैठ रही है। इस बेंच में अलग-अलग धर्मों से जुड़े जजों को रखा गया है। सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम जज इस संविधान पीठ का हिस्सा हैं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ से कराने का फैसला लिया है।
तीन प्रावधानों पर होनी है सुनवाई
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक, मर्दों को तीन बार तलाक बोलकर शादी तोड़ने का अधिकार है। पर्सनल लॉ के तीन प्रावधानों तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक, निकाह हलाला और मर्दों को चार शादी की इजाज़त पर सुनवाई होनी है। इसमें से बड़ा मामला है तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक का है।
तलाक के बाद अगर पति पत्नी को लगता है कि उनसे गलती हुई और वो दोबारा शादी करना चाहते हैं तो उसकी क्या व्यवस्था हो ?
अभी मुस्लिम महिलाएं ऐसी स्थिति में सीधे दोबारा निकाह नहीं कर सकतीं, उन्हें पहले किसी और मर्द से शादी करनी होती है। संबंध भी बनाने होते हैं, फिर नए पति से तलाक लेकर पहले पति से शादी की जा सकती है।
चार शादी की इजाज़त पर भी सुनवाई
मुस्लिम मर्दों को एक साथ चार पत्नियों को रखने की इजाज़त भी कोर्ट की समीक्षा के दायरे में है। हालांकि, कुरान में मर्दों को एक पत्नी के रहते दूसरी शादी की इजाज़त दी गई है, लेकिन इसके लिए कई शर्तें लगाई गई हैं। लेकिन इन शर्तों का पालन नहीं होता।