आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसरो ने शुक्रवार को दक्षिण एशिया सैटेलाइट GSAT-9 का प्रक्षेपण किया। 235 करोड़ रुपये की लागत से तैयार इसरो के GSAT-9 को GSLV-F06 से अंतरिक्ष में भेजा गया है। भारत की इस स्पेस डिप्लोमैसी में दक्षिण एशिया क्षेत्र में चीन के बढ़ते असर को रोकना भी शामिल है।
पाकिस्तान को छोड़कर सार्क के सभी सात देश इस प्रोजेक्ट में शामिल हैं, जिनको इस सैटेलाइट का लाभ मिलेगा। इससे सबसे ज्यादा फायदा भूटान और मालदीव जैसे छोटे देशों को मिलेगा। इसरो का यह सैटेलाइट आधुनिक तकनीक से लैस है…
GSAT-9 की 10 खास बातें
➤ इसरो ने 2,230 किलो वजनी इस कम्युनिकेशन सैटेलाइट को 3 साल में तैयार किया है।
➤ सैटेलाइट को तैयार करने में 235 करोड़ रुपये का खर्च आया है, जबकि पूरे प्रोजेक्ट में 450 करोड़ रुपये खर्च हुए है।
➤ इसमें भारत के साथ ही नेपाल, भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, श्रीलंका और अफगानिस्तान शामिल हैं। हालांकि पाकिस्तान ने यह कहते हुए खुद को इससे अलग कर लिया था कि उसका अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम है।
➤ इससे पाकिस्तान को छोड़कर सार्क के सात देशों को लाभ मिलेगा। दक्षिण एशिया की आर्थिक और विकासात्मक प्राथमिकताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी।
➤ सैटेलाइट से प्राकृतिक संसाधनों की मैपिंग, टेलीमेडिसिन, शिक्षा, मजबूत आईटी कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलेगा।
➤ इसको सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसरो के एकीकृत GSLV-F9 से अंतरिक्ष को रवाना किया गया है। यह GSLV-F06 की 11वीं उड़ान है।
➤ सैटेलाइट में 12 ट्रांसपोंडर्स उपकरण लगे हैं, जो कम्युनिकेशन में मदद करेंगे। प्रत्येक देश कम से कम एक ट्रांसपोंडर को एक्सेस कर पाएगा।
➤ सैटेलाइट से पड़ोसी देशों को हॉटलाइन की सुविधा भी मिलेगी। इससे प्राकृतिक आपदा प्रबंधन में मदद मिलेगी।
➤ 30 अप्रैल को पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा था कि पूरे क्षेत्र के विकास के लिए यह सैटेलाइट लांच किया जाएगा।
➤ यह सैटेलाइट चीन के दक्षिण क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत की स्पेस डिप्लोमैसी का हिसा है।